Tuesday, September 16, 2008

कितने ज़माने लगते है


कितने ज़माने लगते हैं एक दर्द भुलाने मे
और उसे वक्त नही लगता दिल दुखाने मे

आज देखा है उन चेहरों को मैखाने मे
जो ख्याली शक्स मिले थे अफसाने मे

आदतन फिर वादा कर के आना भूल गया
आज कितने किस्से मिलेंगे उसके बहने मे

ये ज़ख्म भी कुछ वक्त के बाद भर जाएगा
बस ज़रा देर लगेगी निशां मिटने मे

तू चाहे जान भी देदे वो नही मानेगा
क्यूँ मर रहा है इतना वफ़ा निभाने मे

जिसके लिया छोड़ा सब, जब वोही छोड़ गया
तो अब क्या रखा है इस दोगले ज़माने मे

जिनको ज़र समझ सिने से लगाये बैठे थे
उन लम्हों का भी भला है गुज़र जाने मे

माह ने जाने क्यूँ उम्मीद लगा रखी थी
अब आती है शर्म दाग दिल दिखने मे


4 comments:

Pramod Kumar Kush 'tanha' said...

ये ज़ख्म भी कुछ वक्त के बाद भर जाएगा
बस ज़रा देर लगेगी निशां मिटने मे

तू चाहे जान भी देदे वो नही मानेगा
क्यूँ मर रहा है इतना वफ़ा निभाने मे

behad khoobsurat khayalat piroye hein ghazal ke har she'r mein...mubarakbaad qubool farmayein...

Dev said...

ये ज़ख्म भी कुछ वक्त के बाद भर जाएगा
बस ज़रा देर लगेगी निशां मिटने मे ...
Wow! Really superb.....
Bahut khash andaj hai aapka...


http://dev-poetry.blogspot.com/

Vinay Jain "Adinath" said...

जिसके लिया छोड़ा सब, जब वोही छोड़ गया
तो अब क्या रखा है इस दोगले ज़माने मे


bahut umda sher hai ............
keep it up..........

jitinindian said...

Excellent.