न तजवीज, न तारीख़ , न तरकीब दी कोई
बस धर दिया दस्त में लकीरों का पुलिन्दा
न सवाब, न जवाब, न दलील कोई चाहे
बस तेरे एक नाम पर ही देख मर मिटा बन्दा
न निस्बत, न करार, न वाबस्तगी ही थी कोई
फिर क्या जाने किस उम्मीद पर मैं रहा ज़िन्दा
न रफीक, न हरीफ, न आलिम था वहां कोई
हाय! बे_बसी किस शेहर का बना गई बाशिन्दा
उफ़! क़फ़स में ही खुश है इस दौर का परिन्दा
जाने किस बिनाह पे खोजे है उसे याबिन्दा
4 comments:
very attarctive poem i like it,
TELL ME HOW DO U WRITE IT MUJH NIKAMME KO BHI KUCH SIKHAO YAAR
न सवाब, न जवाब, न दलील कोई चाहे
बस तेरे एक नाम पर ही देख मर मिटा बन्दा
bahut khuh hai,.....
this poem is nice...my knowledge of urdu is limited but still i like few line very much...
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