Thursday, September 4, 2008

तेरे नाम पे ही

तजवीज, तारीख़ , तरकीब दी कोई

बस धर दिया दस्त में लकीरों का पुलिन्दा





सवाब, जवाब, दलील कोई चाहे

बस तेरे एक नाम पर ही देख मर मिटा बन्दा



निस्बत, करार, वाबस्तगी ही थी कोई

फिर क्या जाने किस उम्मीद पर मैं रहा ज़िन्दा



रफीक, हरीफ, आलिम था वहां कोई

हाय! बे_बसी किस शेहर का बना गई बाशिन्दा



आसमान, जहाँ, उड़ान ही चाहे

उफ़! क़फ़स में ही खुश है इस दौर का परिन्दा



तकरीर, अल्स इस्म, कोई जिस्म था जिसका

जाने किस बिनाह पे खोजे है उसे याबिन्दा

4 comments:

kabira said...

very attarctive poem i like it,

Unknown said...

TELL ME HOW DO U WRITE IT MUJH NIKAMME KO BHI KUCH SIKHAO YAAR

Vinay Jain "Adinath" said...

न सवाब, न जवाब, न दलील कोई चाहे
बस तेरे एक नाम पर ही देख मर मिटा बन्दा

bahut khuh hai,.....

Ravi said...

this poem is nice...my knowledge of urdu is limited but still i like few line very much...