Wednesday, September 3, 2008

मैं एक फरेब हूँ



मैं तेरी हसरतों का एक फ़रेब हूँ

मुझसे उम्मीद-ओ-बन्दगी ना कर


मेरी शक्सीयत फुगाँ ’ओ गुबार सी

मुझसे ख्वाहिश-ओ- ख़ुशी ना कर


अकिद्दत से कुचला हुआ अरमान हूँ

मेरे यार मुझसे आशिकी ना कर


रहीन हूँ ख़ुद मैं जालीम वक्त का

मुझे इस दोज़ख का मुल्तजी ना कर


तुम टूट जाए फानी एख्लाश में

फरेब’ऐ इश्क में इतनी सादगी ना कर


खिज़ा को ढोता शज़र हूँ मैं

मेरे हाल पर मौशिकी ना कर


यह आशिक इश्तिहार’ऐ इश्क हैं

इस इश्क में फ़ना ज़िन्दगी ना कर


2 comments:

sunil said...

faren heen sahi, kam se kam jeene ka bahanaa to hai

Anonymous said...

Aaapki rachnaon k baare mai kya kanhu? kahne ko alfaaz hi nahi hai.
bahut acchaa likhti hai aap.