Thursday, September 11, 2008

तेरी रुसवाई


मैं शामिल नही हूँ तेरी रुसवाई मे

मैंने तो शिकवे किए थे तन्हाई मे



इतना चाहा था उसको के भुला न सका

जाने क्या थी अदा बे_दर्द सौदाई मे



यारों दे कर सज़ा मुझको बे_हिस करो

के संग ही संग हैं मेरी सुनवाई मे



बेसबब ज़स्ब को अब ना परेशां करो

रब्त बनता नही है ऐसी शहनाई मे



रंग अहबाब भी अपना दिखने लगे

शायद वक्त था बाकि मेरी रिहाई मे



जिस्म बेचा था ईमान नही बेचा

कुछ वफाएं बचीं थी उस हरजाई मे



मेरी आँखों के वो सरे खारे मक्कीं

छोड़ गए मुझको तेरी जुदाई मे



2 comments:

•๋:A∂i™© said...

As usual a master piece...


Feelings r ultimately designed through words...

Awesome write... Congrats....

श्रद्धा जैन said...

bhaut sunder