
अपने घर पे एहसान जताते नही हैं
सुनो! पत्थरों को रुलाते नही हैं
वो नाज़ुक ऑंखें संग हो चुकी हैं
इनको मलूल मंज़र देह्लाते नही हैं
जब से देखि है मैंने अहल’ऐ हकीक़त
तब से कोई किस्से दिल बेहलाते नही हैं
बड़ी मुख्तसर थी उम्मीदों की उम्र भी
अब तो तस्सवुर जेहन मे आते नही हैं
बहरहाल मौत की मुझे जुस्तजू है
जिन्दगी! किसी को इतना सताते नही हैं
हमे ये मुता’इन तन्हाई रास आगई है
हम अब अकेलेपन से घबराते नही हैं
No comments:
Post a Comment