Saturday, April 18, 2009

नमक ले दस्त में जो ज़ख्म सारा छू रहा है


वो शीशा जाने क्यूँ पत्थर दुबारा छू रहा है

कु-ऐ-कातिल में क्या किस्मत का तारा छू रहा है??


उसी के पास फिर जाता है ज़ख्मी दिल हमारा

नमक ले दस्त में जो ज़ख्म सारा छू रहा है


शफक की मेज़ से लटकी वो चादर आसमानी

के मनो अब किनारे को किनारा छू रहा है


पनपती जा रहीं हैं देखो शूखी बेलें मेरी

के अब इक बेसहारे को सहारा छू रहा है


लगी बंज़र ज़मी को फिर कोई उम्मीद सी है

के माँ का खाब, अब उसका दुलारा छू रहा है


जिधर देखूं उधर एक प्यास है सब के लबों पे

यूँ हर दिल में कोई दर्द परा छू रहा है


बरसता देखता हूँ यादों के सेहरा में बादल

मेरे नज़रों को ये कैसा नज़ारा छू रहा है


मैं तेरी तिशनगी खूब वाकिफ हूँ ए दरिया

नदी की आड़ में तू घर हमारा छू रहा है


सूना है उस शहर के आशिया सब जल गएँ हैं

तो किस की नब्ज़ ये बादल बेचारा छू रहा है


कई रातें हि मेरी हैं यहाँ बेदार गुजरीं

के मीठी नींद कोई खाब खारा छू रहा है


हवाएं रुक बदल देती हैं मौका देखते ही

सहम कर अब समंदर भी किनारा छू रहा है


मैं इस तूफ़ान का मतलब ज़रा देरी से समझा

सर-ऐ-बाज़ार वो दामन तुम्हारा छू रहा है


फलक के बाम से गिर कर अचानक तारा इक दिन

“माह” के बख्त का पिन्हाँ इशारा छू रहा है



6 comments:

दिगम्बर नासवा said...

मैं तेरी तिशनगी खूब वाकिफ हूँ ए दरिया
नदी की आड़ में तू घर हमारा छू रहा है

सूना है उस शहर के आशिया सब जल गएँ हैं
तो किस की नब्ज़ ये बादल बेचारा छू रहा है

और भी किस किस शेर की तारीफ़ करुँ.............पूरी ग़ज़ल लाजवाब है जीवन का नजरिया और दर्शन झलकता है इस शेर में..........

alka mishra said...

प्रिय बन्धु
खुशामदीद
स्वागतम
हमारी बिरादरी में शामिल होने पर बधाई
मेरी सबसे बड़ी चिंता ये है कि आज हमारे समाज का शैक्षिक पतन उरूज पर है पढना तो जैसे लोग भूल चुके हैं और जब तक आप पढेंगे नहीं, आप अच्छा लिख भी नहीं पाएंगे अतः सिर्फ एक निवेदन --अगर आप एक घंटा ब्लॉग पर लिखाई करिए तो दो घंटे ब्लागों कि पढाई भी करिए .शुभकामनाये
जय हिंद

Sanjay Grover said...

हुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं ............
इधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं ऽऽऽऽऽऽऽऽ

ये मेरे ख्वाब की दुनिया नहीं सही, लेकिन
अब आ गया हूं तो दो दिन क़याम करता चलूं
-(बकौल मूल शायर)

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना!
आप का ब्लाग बहुत अच्छा लगा।
मैं अपने तीनों ब्लाग पर हर रविवार को
ग़ज़ल,गीत डालता हूँ,जरूर देखें।मुझे पूरा यकीन
है कि आप को ये पसंद आयेंगे।
मैं भी वाराणसी से ही हूँ।

MAYUR said...

achhi bangi hai,अच्छा लिखा है आपने और सत्य भी , शानदार लेखन के लिए धन्यवाद ।

मयूर दुबे
अपनी अपनी डगर

Purnima said...

bahut bahut shukriya aap sab ka
meri gazal pe nazar daalne k liye aur use saraahne ke liye